बड़े शहरों के साथ ही अब छोटे शहरों में भी आवासीय कॉलोनियां बसाई जा सकेंगी। इसके लिए सरकार ‘इंटीग्रेटेट टाउनशिप नीति-2014’ में व्यापक संशोधन करते हुए नई ‘उप्र टाउनशिप नीति-2023’ लाने जा रही है। जल्द ही नई नीति को कैबिनेट में रखकर मंजूरी दी जाएगी। नई नीति के मुताबिक अब 2 लाख से कम आबादी वाले शहरो में भी टाउनशिप बनाई जा सकेगी। छोटे शहरों के लिए 12.5 एकड़ और बड़े शहरों में टाउनशिप बनाने के लिए न्यूनतम 25 एकड़ क्षेत्रफल का निर्धारण किया गया है। ताकि विकासकर्ता को भूमि का प्रबंध करने में दिक्कत न हो। वहीं, बड़े शहरों में अधिकतम 500 एकड़ क्षेत्रफल की सीमा को समाप्त किया जा रहा है।

प्रमुख सचिव आवास नीतिन रमेश गोकर्ण ने मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष नई टाउनशिप नीति की प्रस्तुतिकरण किया। मुख्यमंत्री ने नई नीति को सैद्धांतिक सहमति देते हुए कहा कि नई टाउनशिप नीति के निर्धारण के पूर्व पहले की नीतियों के बाधक बिन्दुओं को हटाकर नीति को सरल बनाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा है कि नई नीति में पार्क व हरित पट्टियों में बागवानी के लिए जल संरक्षण, पार्कों के पास शॉपिंग कॉम्पलेक्स, पुलिस स्टेशन तथा पर्याप्त पार्किंग की व्यवस्था हो।

सरकारी व ग्राम समाज की जमीन लेकर दूसरे स्थान पर दे सकेंगे भूमि
ग्राम समाज और सरकारी भूमि को लेकर दूसरे स्थान पर जमीन छोड़ने की अनमति दी जा सकेगी। इस प्रक्रिया को पूरी करने के लिए अधिकतम 60 दिन की समय सीमा निर्धारित की गई है। इस समय सीमा में विनिमय की कार्यवाही न होने की दशा में विकासकर्ता को संबंधित भूमि को छोड़ते हुए परियोजना का मानचित्र दाखिल करने का अधिकार होगा। ग्राम समाज की भूमि के विनिमय का अधिकारी संबंधित मंडलायुक्त को होगा।

स्टांप शुल्क में अब मिलेगी 50 प्रतिशत की छूट
नई नीति में आंध्र प्रदेश की तर्ज पर टाउनशिप का लाइसेंस जारी होने के बाद खरीदी जाने वाली भूमि पर स्टांप शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट देने का प्रावधान किया गया है। लाइसेंस जारी होने से पहले खरीदी गई भूमि पर कोई छूट नहीं मिलेगी। हालांकि हाईटेक टाउनशिप नीति में स्टांप शुल्क में पूरी छूट मिलती थी।

75 प्रतिशत भूमि की उपलब्धता पर ही हो सकेगा क्षेत्रफल विस्तार
नई नीति में टाउनशिप के क्षेत्रफल में न्यूनतम 75 प्रतिशत भूमि उपलब्ध होने और कम से कम एक विकास अनुबंध होने की दशा में क्षेत्रफल में एक बार विस्तार करने की अनुमति होगी। पर शर्त यह होगी कि विस्तारित क्षेत्रफल का रकबा परियोजना के मूल क्षेत्रफल से 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। पुरानी इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति में यह सीमा 60 प्रतिशत थी। वहीं, लाइसेंस से संबंधित क्षेत्रफल में 20 प्रतिशत तक परिवर्तन की छूट देने का भी प्रावधान किया गया है।

इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति में प्रमुख संशोधन
– टाउनशिप बनाने वाले विकास कर्ताओं के समूह (कंसोर्टियम) के लीड सदस्य में परिवर्तन का अधिकार अब प्रमुख सचिव आवास की अध्यक्षता में गठित समिति के पास होगा। पहले यह अधिकार टाउनशिप से संबंधित शहर के विकास प्राधिकरण या आवास परिषद बोर्ड के पास था।
– छोटे शहरों की आबादी के आधार पर टाउनशिप के लिए लाईसेंस जारी करने की फीस अब 50 हजार से 2 लाख और जीएसटी देना होगा। पहले अधिकतम फीस १.५० हालांकि 5 लाख की आबादी वाले शहरों की परियोजनाओं पर फीस में वृद्धि लागू नहीं होगी।
– 10 लाख से अधिक आबादी शहरों में न्यून्तम 50 एकड़ में बहुउद्देशीय स्पोर्टस कांप्लेक्स बनेगा। शहरों में स्पोर्ट सिटी, फिल्म सिटी, आईटी सिटी, मेडिसिटी, एजुकेशनल हब बनेगा। सभी प्रमुख भवनों के फसाड की आर्किटेक्चरल डिजाइन को उच्च्च कोटि का रखा जाएगा। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को शहर के विकास से जोड़ा जाएगा।
– निजी क्षेत्रों में बसने वाली टाउनशिप में सेक्टर विशेष यानी पार्टवार कंपलीशन सर्टिफिकेट जारी करने की व्यवस्था होगी। जिसका सेक्टर का प्रमाण पत्र होगा उसका ही नक्शा पास किया जाएगा। अगर कंपलीशन प्रमाण पत्र नहीं है तो नक्शा पास नहीं किया जाएगा। इसका मकसद अवैध निर्माण पर रोक लगाना है।
– निजी क्षेत्र में टाउनशिप बसाने के लिए लाइसेंस लेने के लिए टर्नओवर का दायरा भी बढ़ाया जा रहा है। प्रत्येक एक एकड़ के लिए 75 लाख रुपये टर्नओवर होना चाहिए। पहले यह 50 लाख रुपये था।
– नई नीति में परियोजना के अंदर आने वाली एससी व एसटी की भूमि खरीदने के लिए डीएम से अनापत्ति लेने की बाध्यता नहीं रहेगी।
– टाउनशिप परियोजना के क्षेत्रफल में शामिल अधिकतम 50 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल का उपयोग कृषि के लिए किए जाने की छूट होगी।
– टाउनशिप के लिए प्रस्तावित भूमि का भू-उपयोग बदलने का अधिकार अब संबंधित विकास प्राधिकरण बोर्ड को होगा। पहले की नीति में यह अधिकार शासन के पास था।
– टाउनशिप के लिए लाईसेंस जारी होने के बाद अब एक वर्ष में डीपीआर मंजूर कराना होगा। पहले यह समय सीमा तीन साल थी।
– टाउनशिप के लिए 60 प्रतिशत भूमि उपलब्ध होने पर ही डीपीआर को मंजूरी दी जाएगी। पहले यह सीमा 50 प्रतिशत थी।

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