सत्यम मिश्रा वियतनाम राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पहले भारतीय हैं जिन्हें विदेशी वैलिडिक्टोरियन अवार्ड से नवाजा गया
बाराबंकी। कांति नगर विकास भवन बाराबंकी के रहने वाले बलराम मिश्रा के पुत्र ने वियतनाम की धरती पर बाराबंकी के सत्यम मिश्रा ने जहां अपनी मेधा का लोहा मनवाया है, वहीं इतिहास रचने वाले सत्यम मिश्रा वियतनाम राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पहले भारतीय हैं जिन्हें विदेशी वैलिडिक्टोरियन अवार्ड से नवाजा गया है। इस विश्वविद्यालय का पहला ऐसा रिकार्ड बना है जो किसी विदेशी छात्र को यह अवार्ड दिया गया है। बाराबंकी के होनहार छात्र सत्यम मिश्रा ने वियतनाम राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (VNU) के अंतर्राष्ट्रीय स्कूल में पहला विदेशी वैलिडिक्टोरियन बनकर अपने नगर का नाम रोशन किया है। वैलिडिक्टोरियन वह छात्र होता है जिसने शैक्षणिक क्षेत्र में सर्वोच्च उपलब्धि हासिल की हो और जिसे दीक्षांत समारोह में विदाई भाषण देने का सम्मान प्राप्त होता है। सत्यम ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग और कंप्यूटर विज्ञान के कठिन कार्यक्रम में शानदार प्रदर्शन कर यह प्रतिष्ठित खिताब हासिल किया। सत्यम की यह उपलब्धि उनके माता-पिता के अथक परिश्रम और त्याग का परिणाम है। उनकी माता, जो एक एनजीओ में काम करती हैं, और उनके पिता, जो एक समाजसेवी हैं, ने उनके शिक्षा के लिए कई कठिनाइयों का सामना किया। जीवन की इन चुनौतियों के बावजूद, उनके समर्पण ने आज इस सफलता को संभव बनाया है, जिसने पूरे परिवार के लिए इस उपलब्धि को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। वर्तमान में सत्यम एक प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनी में एआई इंजीनियर के रूप में काम कर रहे हैं, जहां वे अत्याधुनिक तकनीक में अपने करियर को आगे बढ़ा रहे हैं। भारत के एक छोटे से नगर से अंतरराष्ट्रीय मान्यता तक का उनका यह सफर दृढ़ निश्चय और उत्कृष्टता का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। यह उपलब्धि सत्यम के लिए एक व्यक्तिगत मील का पत्थर ही नहीं है, बल्कि बाराबंकी के लिए गर्व का क्षण है, जो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय छात्रों की क्षमता को दर्शाती है। सत्यम अब अपनी शैक्षणिक यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए पीएचडी करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें उनका लक्ष्य दुनिया के अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक, ईटीएच ज्यूरिख में अपना शोध जारी रखना है। उनकी सफलता बाराबंकी और पूरे भारत के छात्रों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है, जो यह साबित करती है कि सही मानसिकता और समर्पण के साथ, भारतीय छात्र अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक जगत में ऊंचाइयों को छू सकते हैं।