चुनाव में ज्यादातर दल सभी सीटें जीतने का दावा करते हैं। इस सब के बीच भारतीय लोकदल ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसने वर्ष 1977 में प्रदेश की सभी 85 लोकसभा सीटें जीतने का कारनामा कर दिखाया। कांग्रेस इस आंकड़े के पास दो बार पहुंची तो वर्तमान सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी अधिकतम 88.75 फीसदी सीट हासिल कर सकी। इस बार भी सत्तापक्ष और विपक्ष के अपने-अपने दावे हैं। हकीकत लोकसभा चुनाव के बाद ही सामने आएगी।

पहले आम चुनाव में प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बादशाहत कायम की थी। उस समय कांग्रेस के हिस्से 86 में से 81 सीटें आई थीं। दूसरे नंबर पर दो सीट हासिल करने वाले निर्दलीय प्रत्याशी थे। 1957 में भी कांग्रेस को कोई दल टक्कर नहीं दे सका और 86 में से 70 सीटें उसके खाते में गईं। इस बार भी दूसरे नंबर पर नौ निर्दलीय प्रत्याशी ही रहे। वर्ष 1962 में कांग्रेस के प्रभुत्व में कुछ कमी आई और उसके खाते में 86 में से 62 सीटें गईं। हालांकि न तो निर्दलीय और न ही किसी अन्य दल ने दहाई का आंकड़ा पार किया।

1967 के चुनाव में कांग्रेस का सीट प्रतिशत कम होकर 55.29 फीसदी रह गया और दूसरे नंबर पर रहे भारतीय जनसंघ ने 12 सीटें हासिल कीं। 1971 में एक बार फिर से कांग्रेस ने 85 में से 73 सीटें जीतीं। इसके बाद देश में लगे आपातकाल की वजह से पूरे विपक्ष ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा। जनता पार्टी का विधिवत गठन न होने की वजह से भारतीय लोकदल के चिह्न पर 1977 का चुनाव लड़ा गया। इसमें भारतीय लोकदल को 85 में से 85 सीटें हासिल हुईं। इसके बाद वर्ष 1984 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से पूरे देश में कांग्रेस की लहर चली।

इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज करते हुए 85 में से 83 सीटें हासिल कीं। इस चुनाव में लोकदल के खाते में महज दो सीटें ही रहीं। इसके बाद किसी भी चुनाव में कोई भी दल 90 फीसदी से ज्यादा सीट हासिल नहीं कर सका। भारतीय जनता पार्टी ने जरूर 2014 में 80 में से 71 के साथ 88.75 फीसदी सीटें हासिल की थीं।

28 प्रतिशत सीट से सपा बनी सबसे बड़ी पार्टी
वर्ष 2009 के चुनाव में सपा ने 28.75 फीसदी के साथ 80 में से 23 सीटें हासिल की थीं। इस लिहाज से अब तक के किसी भी चुनाव में सबसे बड़े दल द्वारा हासिल की गई यह न्यूनतम संख्या और न्यूनतम सीट प्रतिशत है।

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