मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 की तारीख मुरादाबाद के इतिहास में कालिख की तरह चस्पा है। इस दिन ईदगाह में ईद की नमाज के दौरान हुए विवाद ने दंगे का रूप ले लिया था। इसमें 83 लोग मारे गए थे। दंगे में अपनों को खोने वाले परिवार 43 साल बाद भी दर्द नहीं भूल पाएं हैं। लूटपाट, आगजनी में लोगों के कारोबार तबाह हो गए थे।

मंगलवार को सदन में दंगे की रिपोर्ट पेश हुई तो पीड़ित परिवार को आस जागी है कि उन्हें अब इंसाफ मिलेगा। अपनों को याद कर आंखों से आंसू छलक आए। गलशहीद थाने के बराबर वाली गली में रहने वाले नाजिम हुसैन ने बताया कि उस वक्त मेरी उम्र 7 साल थी। मैं अपने वालिद, भाइयों के साथ ईदगाह पर नमाज पढ़ने गया था।

नमाज पढ़ने के बाद हम लोग घर आ गए थे। ईदगाह पर हुए विवाद के बाद शहर में दंगा भड़क गया था। मैं अपनी वालिदा, वालिद हाजी अनवार हुसैन, भाई सज्जाद हुसैन, कैसर हुसैन और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ घर में मौजूद था। इसी दौरान पुलिस कर्मी आए और उन्होंने दरवाजा खटखटाया।

दरवाजा खोलने में देरी हुई पुलिस कर्मियों ने दरवाजा तोड़ दिया था। इसके बाद वह मकान में घुस गए। पुलिस कर्मी मेरे वालिद, दोनों बड़े भाइयों और हमारे नौकर अब्दुल सलाम को अपने साथ ले गए थे। जब पुलिस कर्मियों से बात की। उन्होंने बताया कि उनके परिवारों से पूछताछ की जा रही है।

उन्हें छोड़ दिया जाएगा। इसके बाद थाने जाकर देखा। वहां मेरे वालिद और भाई नहीं थे। इसके बाद हमने चारों की बहुत तलाश की लेकिन उनका कहीं पता नहीं चल पाया। पुलिसकर्मी बाद में कहने लगे थे कि उन्हें जेल भेज दिया गया लेकिन वो जेल नहीं भेजे गए थे। आ

ज तक चारों न तो घर लौटे और न ही शव मिले थे। मेहनत मजदूरी करने वाले नाजिम ने बताया कि अब आस जागी है कि उन्हें इंसाफ मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *