इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उमेश पाल हत्याकांड में पुलिस द्वारा अशरफ की पत्नी जैनब फातिमा, बेटी और बहन को अवैध रूप से हिरासत में लिए जाने के मामले में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि यह याचिका विचारणीय नहीं है। क्योंकि, याचियों को व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा कर दिया गया है और वे अवैध हिरासत में नहीं हैं और ऐसे मामले में याचिका निष्फल हो गई है। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिरला और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह ने जैनब फातिमा उर्फ रूबी व दो अन्य की याचिका पर दिया।

सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि भले ही याचिकाकर्ता शारीरिक हिरासत में नहीं हैं। याचिका अभी भी बनाए रखने योग्य है। क्योंकि, याचीगण व्यक्तिगत बांड के कारण उनकी उनकी रिहाई को प्रतिबंधित किया गया है। याचिका में मांग की गई थी कि पुलिस को निर्देश दिया जाए कि वे हिरासत में लिए गए याचीगणों को कोर्ट में प्रस्तुत कर उन्हें स्वतंत्र किया जाए।

याचियों की ओर से कहा गया कि उमेश पाल हत्याकांड के बाद एक मार्च को पुलिस तीनों को अवैध रूप से हिरासत में ले लिया। वे तीनों निर्दोष हैं और उन्हें घटना से कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस तीन दिनों तक हिरासत में रखा और किसी भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया। परिजन एक थाने से दूसरे थाने तक याचियों की तलाश करते रहे। याचियों को पुलिस की मंशा सही नहीं लग रही है।

मामले में अपर शासकीय अधिवक्ता मनीष गोयल और अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम एक संड ने तर्क दिया कि तीनों याचियों ने सुनवाई के एक दिन पूर्व ही प्रेस क्लब में प्रेस कांफ्रेंस की। ऐसे में अवैध रूप से हिरासत मेें लेने का कोई प्रश्न ही नहीं है। पुलिस ने तीनों का आईपीसी की धारा 107/116 में चलान कर दिया है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था।

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