यूपी के बरेली जिले में खुदाई के दौरान जो मिला उसने एएसआई ही नहीं आसपास के लोगों को भी चौंका दिया। खुदाई के दौरान मिली वस्तु वर्षों पहले की बताई जा रही है। दरअसल महाभारत कालीन ऐतिहासिक धरोहर को समेटे रामनगर के समीप अहिच्छत्र के खंडहरों में खुदाई के दौरान 15 सौ वर्ष पुरानी मूर्तियां मिली हैं। इन मूर्तियों के गुप्त काल के होने की संभावना जताई जा रही है। इनपर शोध के बाद अहिच्छत्र के विकास की नई जानकारियां सामने आएंगी।
आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की टीम पिछले एक सप्ताह से भीम गदा टीले के निचले हिस्से की खुदाई और सफाई का कार्य कर रही है। मंगलवार और बुधवार को भीम गदा टीले के निचले हिस्से की दीवार से मूर्तियां चिपकी मिलीं। सहायक पुरातत्वविद् विवेक कुमार सिंह ने बताया कि इन मूर्तियों को पटचित्र (पेलन्क्यू) भी कहा जा सकता है। इस काल में मिट्टी के फ्रेम पर मूर्तियां बनाकर उसे आग में पकाकर मंदिर अथवा भवनों की बाहरी दीवार पर लगा दिया जाता था।
इस चित्र को देखने से भगवान शिव और विष्णु का अंदाजा लगाया जा रहा है, लेकिन अभी उच्च अधिकारियों से चर्चा चल रही है। गुप्त काल से जुड़ी अन्य साइटों पर भी इस तरह की मूतियां मिली हैं, इन मूर्तियों से इतिहास के नये तथ्य उजागर हो सकते हैं। अहिच्छत्र में सहायक पुरातत्व विद् विवेक कुमार सिंह और संरक्षक सहायक राजेश कुमार मीना के निर्देशन में 52 लोग खुदाई के काम में लगे हैं।
वर्ल्ड हेरिटेज स्मारक साइट बनाने का लक्ष्य
मेरठ मंडल एएसआई कार्यालय के तहत 82 से अधिक पुरातत्व साइट हैं, जिनमें से अहिच्छत्र विशेष है। इसके विकास के लिए प्रक्रिया तेज हो गई है। अगले 10 साल में इसे वर्ल्ड हेरिटेज स्मारक साइट की सूची में शामिल कराया जाएगा। पुरातत्व विवेक सिंह बताते है कि हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी धौलावीर साइट को विश्व के मानचित्र पर लाने में 28 साल लग गए।
ऐतिहासिक खंडहरों में चार किलोमीटर सड़क बनाने का काम शुरू
रामनगर के मुख्य मार्ग से अहिच्छत्र के खंडहरों में भीम टीले तक जाने का कोई पक्का रास्ता नही है। एक पगडंडी बनी हुई, जिससे पर्यटकों को वहां तक पहुंचने में काफी परेशानी होती है। इसीलिए पुरातत्व विभाग ने सड़क निर्माण का कार्य शुरू करा दिया है।
पुरातत्व संग्रहालय का प्रस्ताव शासन को जाएगा
पुरातत्वविद् ने बताया कि वर्ष 1940, 1963, 2004 और 2014 में अहिच्छत्र में खुदाई का काम हुआ है। इस दौरान अमूल्य धरोहर मिली हैं, जिन्हे नेशनल म्यूजियम में रखा गया है। यहां पुरातत्व संग्रहालय का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा जाएगा, जिससे यहां मिलने वाली मूर्तियां आदि को अहिच्छत्र में ही संजोया जा सके।
अहिच्छत्र में पनपी हैं कई संस्कृति
पांचाल प्रदेश की राजधानी रहे अहिच्छत्र में कई संस्कृतियों को पनपने का मौका मिला है। मान्यता है कि यह द्रोपदी का जन्म स्थल और राजा द्रुपद का राज्य रहा। इस क्षेत्र में पांडवों ने अज्ञातवास गुजरा और लीलौर झील पर यक्ष ने पांडवों से प्रश्न किये। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ स्वामी को केवल्य ज्ञान यही प्राप्त हुआ और भगवान बुद्ध ने नागवंश के अंतिम शासक अच्युतनाग और उनकी प्रजा को दीक्षा प्रदान की।
आंवला एसडीएम एनराम ने बताया, अहिच्छत्र में मूर्तियां मिलने से इतिहास के कई नये तथ्य उजागर होगें। खंडहरों में अवैध रूप से खेती कर रहे किसानों की जांच कराकर उन्हें हटाया जाएगा।