नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भड़काऊ भाषण के आरोप में मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना कर दिया। इससे पहले राज्य सरकार ने मई 2017 में इस केस को चलाने की अनुमति देने से मना कर दिया था। तब सरकार का कहना था कि इस केस में पर्याप्त साक्ष्य नहीं है, जिसको 2018 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी सही ठहराया था।

हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी। 14 मई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता रशीद खान को योगी आदित्यनाथ समेत सभी अभियुक्तों को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील फुजैल अय्युबी से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि आपने बाकी अभियुक्तों को पक्षकार क्यों नहीं बनाया है तो उन्होंने कहा कि चूंकि हाई कोर्ट में रिवीजन पिटीशन अभियुक्त नंबर दो महेश खेमका ने दाखिल की थी, इसलिए हमने उन्हें पक्षकार नहीं बनाया लेकिन अभियुक्त सभी हैं।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत देते हुए गोरखपुर दंगों में उनकी भूमिका की जांच की मांग को खारिज कर दिया था। याचिका में साल 2007 में हुए गोरखपुर दंगों में योगी आदित्यनाथ की भूमिका की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से दोबारा जांच करवाने की मांग की गई थी। हाई कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।

उल्लेखनीय है कि 2007 में योगी आदित्यनाथ को शांतिभंग करने और हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। आरोप था कि उन्होंने समर्थकों के साथ मिलकर दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प में एक युवक की मौत के बाद जुलूस निकाला था।

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